________________ अनुनादक बार ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषभी। सयविभत्त लक्खग पसत्थ, सुंदरविराइयंगमंगा, मत्तगयवरिंद, ललियविक्कम विलसियगती, कडिसुत्तग नीलपीत. कोसीजवाससा, पवदित तया, सारयनत्र थणिय, मधुरगंभीर णिद्धघोसा नरसिंहा, सिहविक्रमगति. अत्थमिया, पवररायसीहा, सोमावारवयि, पुण्णचंदा पुनक्कड तवप्पभावा, निविडसं चयसुहा, अगेगवाससयमाउ वंता, भजाहिजणवयप्पहाणाहि लालियंता, अतुल सद्दफरिस रस रूव गधय अणु भविता, तोवओवणमंति मरणधम्म अवितित्ता कामाणं // 5 // भुजोमंडलिय आंखो वाले, एकापछि हारसे हृदय को रचित करने वाले, श्रीवत्म के लक्षण वाले, प्रधान यश के धारक सब ऋतु के सुगंधित पुष्पों से बनाई हुई लम्बी लटकती हुई विचित्र प्रकार की वनपाला वक्षःस्थल पर धारन करनेवाले, 108 उत्तम लक्षणवाले, सुंदर अंगोपांगवाल, पराक्रम महित गतिव ले, कटिमूत्र युक्त, वासदेव के हरे और बलदेव के पीले वस्त्र के धारक, शरद ऋतु की मेघ गर्जना जैसे मधुर गंभीर घोष / करने गले, मनुष्यों में सिंह समान पराक्रपवाले, पहा राजाओं में सिंह समान, सौम्य आकारवाले, द्वारिका के नाथ पूर्ण चंद्र सपान, पूर्व कृत तप के प्रभाव से संचित किये हुए सुखवाले सेंकडों वर्ष पर्यंत आयुष्य पालकर स्त्रियों के माय अतूल्य शब्द, स्पर्श रम रूप और गंध यों पांचों इन्द्रियों के सुख का अनुभव लेते हैं. वे भी काम भोग अतृप्त पने हुए अकस्पात् परण धर्मको प्राप्त हुए। अब पंडलिक राजाका कथन *प्रकाशक-राजाबहादुर लालासुखदेवसहायजी जाल प्रसादनी *