________________ LLAGADG000.... . . . . . . . .LLLLL . CHESTESTIODERAPISORT IONASE MANTRIESnak XAXI DORIXEXERISEXIXERB HISSION लहsseREEEEEEEEEEEEEEEEEECHEE-CEC86862RECECE-EFERE-REFER-600-666666666107 - - 484 // दशमाङ:-प्रश्नव्याकरण-सूत्रम् // ॥प्रथम-आश्रवहार // है जंबू ! इणमो अण्हय संवर, विणिच्छियं पश्यणस्स निस्संदं // वोच्छामि णिच्छयत्थं, सुभासियत्थं महेसीहिं // 1 // पंचविहो पन्नत्तो जिणेहिं, इह अण्हओ अणादिओ। 1. श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी के पांचवे गणधर श्री सुधर्मास्वामी अपने पाटवीय शिष्य श्री जम्बूस्वामी से कहते हैं कि अहो जम्बू ! अब में दशवा प्रश्नव्याकरण सूत्र कहूंगा. इस में जीव रूप तालाब में कर्मरूप पानी आने का आश्रवरूप मार्ग और उस आश्रव का रुंधन करने वाला संवर रूप प्रतिबंध कहा हुवा है. इसलिये तत्व का निर्णय करने को मैं यह शास्त्र कहता हूं. ऐमा शास्त्र श्री तीर्थकर देवने ज्ञान से जानकर प्ररूपा है. // 1 // श्री जिनेश्वर भगवानने कर्म आने के द्वाररूप आश्रय + के पांच भेद कहे हैं. वे पांचों प्रकार के आश्रव संसारी जीववत् भादिरहिन हैं परंतु भनेक प्रकार के 484 देशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम अश्रद र 1 ईसा नामक प्रथम अध्ययन 44