________________ - अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी निघोसा उप्पणसम्मत्तरपयण चक्करयणप्पहाणा,नवनिहिवइणोसमिद्धकोसा, चाउरंता, चाउराहिं सेण्ण हिं समणुजाइजमाणमग्गा, तुरंगपति, रहपति, गजपति, नरपति, विपुलकुल विसुयजसा सारय ससि सकलसम्मवयणा, सूरा, तिल्ले क निग्गयपभाव लडसद्दा, सम्मत्त भरहाहिवा नरिंदा, ससेलवण काणणंच हिमवंत सागरंतधीरा भोत्तूण भरहवासं, जियसत्तू पव राय सीहापुवकडतवप्पभावा, निविसंचियसहा, अणेगवास सयमाउव्वंतो, भज्जाहिय जणवयप्पहाणाहि लालियंता अकुलसद्दफरिस रसरूवगंधये अणुभवित्ता, तंविउबवणमति मरणधम्म अवितित्ता चूलहिम पति पर्यंत राज्य करने वाले, अश्व, रथ, गज, और पदााते इन चार प्रसार की सेना सहित मार्ग का अतेक्रमण करन चाले विस्तृत कीर्ति वाले, शरदऋतु के पूर्ण चंद्र समान सौम्य सुंदर मुखाकृति वाले, शूरव र तीन नोंक में विख्यातकीर्ती वाले, संपूर्ण भरत क्षेत्र के अधिपति, सब मनष्यों के इन्द्र, चूलाहिवंत पर्वत से लवण समुद्र पर्यंत सब के स्व मि, धैर्यवं, सब पर जय करने वाले, राजःओं में मिह समान पूर्व कृत तप के प्रभाव से संचित किये हुवे महा सुख भोगने वाले, और जघन्य सातसो वर्ष उत्कृष्ट चौगसी लक्ष पूर्व का आयु भोगने वाले, प्रधान रूप वाली भार्या के साथ मनोन शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध यों पांचो इन्द्रिय के सुख का अनुभव करते * प्रकाशक-राजाबहादुर लाळा सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *