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________________ मान-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम आश्रवद्वार ? चउतासहस्स पवरजुवतीजणणयण कंता रत्ताभापउमपम्ह, कोरंटकदाम चंपगसुतचितवरकणक निहसवण्णा, सुजाय सव्वंग सुंदरंगा, महग्यवर पट्टणुग्गय विचि. त्तरागएणीपए निम्मिय, दुग्गल वर चीणपट्ट कोसिजा,सणी सुत्तग विभूसियंगा, वरसुरभिगंध वरचुण्णवासं, वरकुसुम भरिय सिरया, कप्पिय छेयायरिय सुकय रचित माल कडगं गय तुडिय, पवर भूसण पिणद्धदेहा, एगावलिकंठ, सुरचिय वत्था, पलंब पलबमाण सुक्यपडउत्तरिजा, मुद्दिया पिंगलंगलिया,उज्जण नेव वत्थ . रइय, चिलग विरायमाणा, तेएणं दिवाकव्वदित्ता, सारय नयथगिय मधुरगंभीर ताह चित्रमालादि आभरण, कंकण, बहरखा, भुजबंध, वगैरह प्रधान भूषणों से पुष्ट शरीरबाले, कण्ठ में, एकावलिं हारवाले.शरीर पर अच्छे स्वच्छ वस्त्र धारन करनेवाले, लम्बे लटकते हुवे उत्तम उत्तगसनवाले,मुद्रिका से पीली अंगुलियोंगले. उन्चल बस्त्र में देदीप्यमान, तेज से सूर्य समान शरद काल के मेघ जैसा मधुर पिष्ट गंभीर शब्द बोने वाले, चक्र, छत्र, दंड, खड्गा, चर्म, मणि और कांगण ये सात एकेन्द्रिय रत्त सेनापति, गाथापति, वार्धिक, पुरोहित, श्रीदेरी, अश्व और गज ये सात पंचेन्द्रिय रत्न यो 14 रत्न की धारक, नेसर्प, पंडुक, पिंगल, सर्व रत्न, परम, काल, महाकाल माणवक, शंख. इन नव निधान के आधिपते सब प्रकार की ऋद्धि से प्रतिपूर्ण भंडार वाले, तीन दिशा में समुद्र पर्यंत और चौथी उत्तर दिशा में / 18. अह्मचय नामक चतुर्थ अध्ययन 48th .
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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