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खे मार । होवे क्ष्वारी के ॥ जर जोबन जाय । तन मन सुरजाय । ढक उपर गाय । नके द्वारी के ॥ कहे अमोल संत । विष विषय अंत । कइ दुःख देवंत । मानो प्यारी के ॥ १ ॥ ॐ ॥ ढाल वोही || पर महीला प्रसंग थी । दरवे भावे दुःख पावे जी ॥ एह लोक बीति पडे । मर दुर्गत मांही जावे जी ॥ कामी ॥ ९ ॥ इन सीख सुणी भूपती ।। अधीकी रील भराणी जी ॥ उपदेश देवे मुज भणी । तूं दीसे घणी शाणी जी ॥ कामी ॥ १० ॥ खबर दार बोले मती । अक्कल थारी में जाणी जी ॥ जा तूं महाराथी परी ! दूजे स्थान गइ राणी जी ॥ कामी ॥ ११ ॥ चैन पडे नहीं क्षिण भरी । अंग में व्याप्यो कालो जी ॥ तडफनिकाली रातते । जब ऊगो दिने वामो जी ॥ कामी ॥ १२ | आइ सभा में हुकम दयो । शैन्य शिघ्र सज कीजे जी ॥ अरी करकट को क्षय करी || राज तस तावे लीजे जी ॥ कामी ॥ १३ ॥ नगारो सुण जुंगराय जी । जेष्ट भ्रात पासे आया जी || पूछ्वाथी कहे राय जी । तुज ने फिकर नहीं कायां जी ॥ कामी ॥ १४ ॥ धृग तुज क्षत्री पुत्र ने । भोग में गृध थइ रहीयो जी || दुशमण धूम मचा रह्या । तास खबर नहीं लहीयो जी ॥ कामी ॥ १५ ॥ प्रताप सेण सुणी वयण ए। अंग में चडयो रण शुरोजी ॥ कोण शत्रू छे बतावीये । अब्बी करूं चक चूरो जी ॥ कामी ॥ १३ ॥
खण्ड १