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________________ ९ दोपहरे २ राना 1 राय कहे होइ सज तुमे । करकट को जाइ मारो जी || आण मनावो आपणी । पाछा | वेग पधारो जी ॥ कामी ॥ १७ ॥ बचन चडाइ सिरपरे । निज मेंहल मांही आवे जी | बीजी ढाल बन्धू कपट की। ऋषि अमोलख गावे जी ॥ कामी ॥ १८ ॥ * ॥ दुहा। ॥ प्रीतम पधार्या देखकर | सती उठ आदर दीघ || रण मांहे जावा तणी । सती - |गल बात की ॥ १ ॥ एक मांस में आवस्यूं । थे रह जो सुख मांय ॥ सील रत्न तन करंड में । राख जो यत्न सवाय || २ || सती कहे भले पधारीये । करी शत्रू को नाश || वेगा दरशन देइने । पूरण कीजे आस ॥ ३ ॥ शैन्या संग सुर चालीया । सती नेणे नीर भराय ॥ प्रद्युमन खुशी हूवा । हिवे मुज कार्य थाय ॥ ४ ॥ ७ ॥ ढाल ३ जी ॥ चार पेहर को दिन होवेरे लाल || यह || दूजे दिन प्रद्युमन रायजीरे । प्रताप सेण का दासी दास हो ॥ श्रोताजन ॥ निकलाइ दीया मेहलधीरे । पूरवा भगी दुष्ट आस हो ॥ श्रोता | जन ॥ १ ॥ जोय जो सती को सत्य पणोरे || आं ॥ पर वश पणें ते बापडारे । जाइ बेठा निज गह हो ॥ श्री ॥ पुरी मंडले तब गर्डे पतीरे । विभूक्षित करी निज देह हो ॥ श्रो ॥ जो ॥ २ ॥ निशंकपणे गुप्त मार्गेरे । भुवन सुन्दरीरा मेहल मांय हो श्रोत ॥ आवे चोर तणी परेरे । सती बेठी सामायिक ठाय हो ॥ श्री ॥ जोय ॥ ३ ॥ अचाणक आइ
SR No.600303
Book TitleBhuvansundari Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherEk Shravika
Publication Year1912
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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