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________________ पासज आय॥ नेत्र गुटिका जल छांटतां । झट सावध नृप थाय ॥१॥ सती उठ दूरी गइ। खण्ड नृप जोवे भर नयन ॥ लोभी कामी सुख लाल से । करे दुःख केइ सहन ॥२॥ कर जोडी, ५ नरवर भणे। करो मुज अंगीकार ॥ चरन दास हो रेवस्तूं। कह सो करूं प्रकार ॥ ३ १ राजा सती कहे सुण राजवी । जो में करस्यूं पुकार ॥ सज्जन पुरजन मिल करी । कर से । तुज फिटकार ॥ ४ ॥ मून रही ने नरपती । आयो आपणे गेह ॥ बेठो चिन्ता माय ने। मन में वसरही तेह ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल ४थी ॥ जात्रीडा जात्रा निन्याणु कारीयेरे ॥ यह ॥ देखो सतीयां तणी द्रढ ताइरे । कायम किम वे सील मांही ॥ देखो ॥ ७॥ क्षिती पति मन मांही वीमासेरे । इहां रह्या काम नहीं थासेरे । वन में लेगयां या वश आसे । देखो ॥ १ ॥ दूती ने तब बुलावर । भुवन सुन्दरी की बात चेतावेरे । कर झट। जाइ एक उपाव ॥ देखो ॥ २ ॥ रथ मांही तास बेठाइरे । ले चाल तूं जंगल मांही गरे ॥ पाछल थी हूँ रहस्यूं आइ ॥ देखो ॥३॥ दूती भुवन सुन्दरी पास आवेरे । मधुर वचने इम बोलावेरे । प्रताप सेण जी तुमने बुलावे ॥ देखो ॥ ४ ॥ बन्धव कपट बात। तिण जाणीरे । बाहिर डेरा दीपाछे आणीरे । सती जाणी बात साचाणी ॥ देखो॥५॥ आइ बेठी रथ चलायोरे । पीछे थी धरणी धव आयोरे । मिल्या आइ जंगल ने मायो
SR No.600303
Book TitleBhuvansundari Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherEk Shravika
Publication Year1912
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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