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________________ बलत्कारी को आचार हो । सु । जोय ॥ १२ ॥ सती कहे तुम छो राजवीहो । ए नहीं | उत्तम काम हो ॥ रा ॥ महारो सील सहाइ छेजी । श्री जिन पूरसी हाम हो ॥ रा ॥ जो ॥ १३ ॥ राय कहे में नीच छूरे । किम होत्रे जिन तुज सहाय हो ॥ सु ॥ इम कही ने पकडण चल्योरे । सती नवकार मन ध्याय हो ॥ श्रोता ॥ जो ॥ १४ ॥ सासण सुरी आइ तदारे । नृप ने मुरछा दीघ हो ॥ श्रो ॥ आँख मीच धरणी ढल्योरे । हूयो मृत्युक की विध हो ॥ श्री ॥ जो ॥ १५ ॥ सती के मन चिन्ता हुइरे । अरर हुयो यो अकाज हो ॥ श्रो ॥ मुज मेहल में राज मूयोरे । लोक मील्या जासी लाज हो ॥ श्री ॥ जो ॥ | १९६ ॥ डाकण सीकोतरी बाजस्यूंरे । पती पण करसी अपमान हो ॥ श्री ॥ अहो वीतराग सरणो आपरोरे । पुनः कन्यो नवकारको ध्यान हो ॥ श्रो ॥ जो ॥ १७ ॥ सासण देवी प्रगट हुइरे । सती ने कन्यो नमस्कार हो ॥ श्री ॥ गुटिका दीवी तस हाथ मेंरे । कहें एमा गुण अपार हो ॥ श्री ॥ जो ॥ १८ ॥ इण ने घसी ने लगाव तांरे । सर्व रोग नाश थाय हो । सती जी ॥ तिलक कियां रूप प्रावृतरे । विष सर्व जात विरलाय हो । सती ॥ जोय ॥ १९ ॥ एता गुण बताय केरे । देवी गइ अकाश हो ॥ श्री ॥ तीजी ढाल अमोलख कहीजी । सतीकी पूरी आस हो ॥ श्री ॥ जो ॥ २० ॥ ॥ दुहा || सती सामायिक पारके । भूप I
SR No.600303
Book TitleBhuvansundari Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherEk Shravika
Publication Year1912
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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