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________________ न.वि. पुण्य ॥ वीती० ॥ रा० ॥ २५ ॥ जेष्ट की छांये निश्चिन्त विजय जी रहावे हो । पुण्य ।। पाता ।। पुण्य ॥ जेष्ट ॥ रा०॥ स्वर्ग समा सुख भोग में काल बीतावे हो ॥ पुण्य ॥ स्व ०॥ रा० ॥ २६ ॥ जय के चार विजय के तीन है राणी हो ॥ पुण्य ॥ जय ॥ | | रा०॥ पुण्य ढाल चौबीस अमोल गवाणी हो ॥ पुण्य ॥ पुण्य ॥ रा०॥ २७ ॥ * ॥ दोहा ॥ पुण्य वृक्ष निज फल लखी। दोनों बन्धव उस वार ॥ तात से मिलने ऊमंगीया। देखाने चमत्कार ॥ १॥ विन गुने अपमानीया । तास बतावां फल ॥ चालो सेना ले सहू । कीजे कुल वीमल ॥२॥ ता तदि सज्जन सह ।। क्या जानेंगे मन मांय ॥ कुवर गया प्रलय भया । के रह्या ऋद्धि पाय ॥३॥ भचर नभचर की सबी । करी सेना तैयार ॥ नभ भूभी भाग संकीर्षा कर । चले ! करत जयकार ॥ ४ ॥ रस्ते आते अन्य राज में । शक्ति से मनाता प्राण ॥ करपता सेना सामठी । सुखे २ करे प्रयाण ॥ ५॥ ॥ ढाल २५ वी ॥ खडका छन्द । मे ॥ आयो सब सीम जहां प्राइ निज तात की। छावनी डाल तहां सह रहीया॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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