SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज०वि० ८८ नारी अप्सरा समानी हो ॥ पुण्य० ॥ जय० ॥ रा०॥ काम देव ने रति प्रीति | जोडी सो जानी हो ॥ पुण्य० ॥ काम० ॥ रा० ॥ १६ ॥ और सब | ऋद्धि तेज बल कर शोभे हो ॥ पुण्य ॥ और ॥ रा०॥ ऐसे ठाठ से काम पुरे । चल पाया हो ॥ पुण्य ॥ ऐसे ॥ रा०॥ २०॥ पुर वाहिर उतरीया खबर संचरीया हो ॥ पुण्य ॥ पुर० ॥ रा०॥ लोक सब आश्चर्य भरीया देखन हरीया हो ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ जाणी जयजी सेना-मंगल ताम सजाइ हो ॥ पुण्य ॥ जाणी॥ रा०॥ सामें पाया लीना लघु बन्धव बधाइ हो ॥ पुण्य ॥ सा०॥रा० ॥ २२ ॥y नगरी सिणगार गोरडी गीत उचारी हो ॥ पुण्य ॥ नग ॥ रा० ॥ दोनो गज अारूढ पेस्या सब परिवारी हो ॥ पुण्य ॥ दोनों ॥रा०॥ २३ ॥ देखी खेचर भू चर अति विस्मावे हो ॥ पुण्य ॥ देखी ॥ रा०॥ मोतीयों का मेह वर्षाइ राय बधा| वे हो ॥ पुण्य ॥ मोती ॥ रा०॥ २४ ॥ अाया मेहल मेहल मांही सुखे सहू साथ || रहाइ हो ॥ पुण्य ॥ श्रा०॥ रा० ॥ वीती वारता भ्राता ने वीजय सुनाइ हो ॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy