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________________ ज०वि० ८७ । रा०॥ १२ ॥ विजयति नगर ऋद्धि सिद्धि भर में पधार्या हो ॥ पुण्य० ॥ वि०॥ रा०॥ विजयन्त भूपत हर्षत विजयजी ने जोइ हो ॥ पुण्य० ॥ विज० ॥ राजि० | ॥ १३ ॥ पुण्यात्म जमाइ ने लियसौ बधाइ हो ॥ पुण्य० ॥ पुण्या०॥ रा०॥ | अति प्राडम्बर विजयन्ति वाइ परणाइ हो ॥ पुण्य० ॥ अति०॥ रा०॥ १४ ॥ । महाविद्या तस रोहणी नाम सु दीनी हो ॥ पुण्य० ॥ महा० ॥ रा०॥ अति प्रा| नन्दे विजयजी गृहण तस कीनी हो ॥ पुण्य० ॥ अति० ॥ रा०॥ १५ ॥ थोडे काल तहां रेइ पुनः करी तैयारी हो ॥ पुण्य० ॥ थोडे० ॥ रा०॥ निजपुर जाने । स्वसुसरादि रजा गृही जहारी हो ॥ पुण्य० ॥ निज० ॥ रा०॥ १६ ॥ गजगाजी IN दास दासी गगन चारी दीना हो ॥ पुण्य० ॥ गज०॥ रा०॥ सब ऋद्धि से परि बर्या नभ मार्ग लीना हो ॥ पुण्य० ॥ सब० ॥ राज० ॥ १७ ॥ पुनः जयन्ति आया सुख से रहा या हो ॥ पुण्य० ॥ पुनः०॥ रा०॥ तहां से भी ऋद्धि अ|धिक ले आगे सिधाया हो ॥ पुण्य० ॥ तहां० ॥ रा०॥ १८ ॥ जयन्ति विजन्ति
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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