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________________ ज०वि० ॥ ज०॥ रा० ॥ उतर्या विमान से माघव समान शोभाया हो ॥ पुण्य० ॥ उ० ॥ ८६ रा०॥६॥ खेचर पति सपरिवारे उछरंगे बधाया हो ॥ पुण्य० ॥ खे०॥ रा०॥ घणेही सन्मान से ऊँचे अासन वैठाया हो ॥ पुण्य० ॥ घणे० ॥ रा०॥७॥ अति अाडम्बर लमोत्सव को कराइ हो ॥ पुण्य०॥ अति०॥ रा०॥ जयती नामे बाइ विजय ने परणाइ हो ॥ पुण्य० ॥ ज०॥रा०॥८॥ कन्यादान सु प्रमान देवन की वारे हो ॥ पुण्य० ॥ कन्या०॥ रा०॥ प्रज्ञाप्ति महाविद्या दीवी । सुखकारे हो ॥ पुण्य० ॥ प्रज्ञा० रा०॥६॥ और यथा विधी सुसरे जमाइ स न्मान्य हो ॥ पुण्यः॥ और०॥रा०॥ अपूर्व लाभ ले अनन्द विजय अति मान्या हो ॥ पुण्य० ॥अपू०॥रा०॥ १० ॥ सर्व सुख में लीन स्वल्पकाल तहां V रेइ हो ॥ पुण्य० ॥ सर्व० ॥ रा० दूसरे विद्याधर युत नृप सम्प्रती लेइ हो ॥ पुण्य० ॥ दूस०॥रा०॥ ११॥ बैठ विमान में पुनः असमान मे चाल्या हो ॥ पुण्य०॥ | बैठ०॥रा०॥ उत्तर श्रेणि साठ नगर का ठाठ निहाल्या हो ॥ पुण्य० ॥ उत्त०॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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