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ज०वि० लूटता खोसता त्रासता ठाकरा । जायजों खबर तात अावे अहीया ॥ १ ॥ प्रा.
ताप प्रताप महा पुण्य बलीया तणा । अरि हरी जय श्री वेग पावे ॥ टेर ॥ शूर । || ने वीर रणधीर राणा मिली । जोर को तोर अधिको जणावे ॥ आताप ॥२॥
भागीया राजीया अाया नरेन्द्रपे । दल बल छल रोशे जगावे ॥ सुणी धर्मराय || भराय कोपे अति । है कोन दुष्ट मुझ सामे अावे ॥०॥३॥ सजी सब फोज रख चोज लडवा तणी । खोज खोवा दुष्ट परी नर नो ॥ गज रथ पालखी भेट शूरा सजी । शूर ज्यों गाजीया मेघ भरनो ॥ श्रा० ॥४॥ मयंगल मद भर्या । सिणगारी सज कर्या । श्याम घटा छाइ ज्यों माधव अावे॥ गुल गुलाट गर्जारब विद्युत होदा चमक । लम्ब घण्टा घोर नाद थाये ॥ श्रा०॥ ५॥ तुरंग कुरंग ज्यों चपल पग स्थिर नहीं। रोसाल चौफाल हणणाइ रहीया ॥ पालाण मजबूत रजपूत बैठा सजी। शस्त्र सम्बन्ध कर सज थइया ॥ श्रा०॥ ६॥ रथ संग्रामी सजा। झणणाटे अरि लजा । जरी खोल पचरंग नेजा फरके ॥ राणा वैठा मांय खेंची धनुष्य