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टेर || दो देश अधिपति भया जयसेनजी । गुणवन्ती मिली तीन नारी ॥ जय ॥ ॥ १ ॥ तीन सिद्धी तीन लोक में अपर बल । विलसे सुखसो सुरसारी ॥ जय ॥ ॥ २ ॥ एक दिवस बन्धु याद आयो । ऋद्धियुत मिलणो हि जारी ॥ जय ॥ ३ ॥ बहूत विछोहा रह्या इत्ता दिन । अबतो रेवां एक ठारी ॥ जय ॥ ४ ॥ मंचने तब राज भोलायो । नीति रीति सब चेतारी ॥ जय ॥ ५ ॥ जौर योग्य बन्दोबस्त सब करीयो । कराइ सेना सज सारी ॥ जय ॥ ६ ॥ तीनों राणी ने साथही लीनी । और ऋद्धि बहू श्रेय कारी ॥ जय ॥ ७ ॥ शुभ महूर्त प्रयाण कर्यो तब । हयगय रथ दल परिवारी ॥ जय ॥ ८ ॥ प्राहूणाचारी करता मार्ग में पुर २ पती घर मनवारी ॥ जय ॥ ६ ॥ सुखे २ यों मुकाम करता। आया काम पुर सीम मांरी ॥ जय ॥ १० ॥ समाचार ये पाया विजयजी । अनन्द पाया - पारी ॥ जय ॥ ११ ॥ शीघ्र हुकम कीयो करो सजाइ । नगरी स्वर्ग सी सिणगारी जय ॥ १२ ॥ आप सबी परिवार संघाते । सन्मुख याया पाय चारी ॥ जय ॥