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________________ अ०वि० अवसरे करे उद्धार ॥ जेत्रमल ऋषिराज त्यों ते । पावे सुख श्रेयकार ॥ पु ॥ १५ ७५ ॥ जयपुर पति जयजी भयाजी । संभाली राज लगाम ॥ संतोष्या सब साजना जी । अर्पि युक्त जे ठाम ॥ पु ॥ १६ ॥ धर्म कामार्थ साधताजी । सुख से रहे ॥ जयराय ॥ ढाल बीस अमोलक कहेजी । पुण्यें सुख सवाय ॥ पु ॥ १७ ॥॥ दोहा । जिस दिन से जय कुमरजी । तज्यो कामलता गेह । तिसदिन से पति व्रता सम । अभिग्रह धररही तेह ॥ १॥ स्नान भूषण मही वस्त्र तज्या । न कियो | सरस आहार ॥ एकान्त वास सयन धरा । अल्पभाषी प्राचार ॥ २ ॥ अक्का सम- 1 । जावे घणी । ते माने नलगार । मांस द्वादश वीतीया । तब सुपीया समाचार ॥ N३॥ जयजी जयपुर पति भया । उमंगी मिलण तेवार ॥ श्राका लाइ वैठाय के । शिविका में दरबार ॥ ४॥ वीती बात कही भूपने । सत्यवन्ती तस जाण । राखी अन्तेउरी विषे । प्रेमे पोषी प्राण ॥ ५ ॥ ॥ ढाल २१ वी ॥ वीसरेमति नाम जिनंदजी को ॥ यह ॥ जय विजय नृपति का पुण्य भारी ॥जय ॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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