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________________ ज०वि० ७४ बन जाय ॥ पु० ॥ ६ ॥ बनी वक्त में सबी बने जी। बिगड्या बने न काय ॥ वणी २ में सुधारलो तो। फिर पस्तावो न थाय ॥ पु०॥७॥ इत्यादि गुरु देश नाजी । अमृत बृष्टि सम ॥ मुरजा मिथ्यात्वी जवासीया जी। भव्य चंपक गइ रम M॥ पु०॥ ८॥ सम्यक्त्व व्रत केइ वर्याजी । वैराग्या नृपाल ॥ वंदी मुनि सब निज || 1 गृहेजी । प्राया फिरी तत्काल ॥ पु ॥६॥ चिन्ते पुत्र सो होय के जी। एकही नहीं राज जोग ॥ जयजी सह गुण संपनाजी । देवु राजगुण छोग ॥ पु ॥१०॥ । शीघ्र बुलाइ जय भणीजी । दर्शायो ते विचार ॥ सो कहे सह सला लेइजी। करो काम सुखकार ॥ पु॥ ११॥ राणी पुत्रों मंत्रीने जी । कही उपजी सो बात ।। 1 जची सबी के मन विपेजी । जयजी ने गादी बैठात ॥ पु॥ १२ ॥ जेत्रमल राजे श्वर । कर महोत्सव दिक्षा लेय ॥ अंग एकादश सीखीया । फिर तप दुक्कर मा ड्यो तेय ॥ पु ॥ १३ ॥ संचित कर्म खपाय के जी । पाया केवल ज्ञान ॥ धणा । भवी को तारके जी । पायापद निर्वाण ॥ पु॥ १४ ॥ जन्म प्रमाण ते नरतणोजी।।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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