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ज०वि० | ॥ १३ ॥ देख जेष्ट भाइ उमंग भराइ । जा पड्या चरणां मझारी ॥ जय ॥ १४ ॥
उठाइ जय हृदय से भीडया । गर्क प्रेमरत गुलतारी ॥ जय ॥ १५ ॥ मेमांश्रुत कहे || अचिन्त्य गया तजी। में दुःख पाया अपारी ॥ जय ॥ १६ ॥ आज कृतार्थ
मुझ ने कीनो । भाइ सन्मुख दयालारी ॥ जय ॥१७॥ दोनों प्रारूढ हुवा एकही
गय पर । रवी शशी सम शोभतारी ॥ जय ॥ १८॥ सब परीवारे चल मध्य | बजारे ॥ छत्र शीश चमर ढुलारी ॥ जय ॥ १६ ॥ सहकारों मोती मेहे वर्षाया। | सोभागणी लिया व धारी ॥ जय ॥ २० ॥ आया मेहल में राज सभा में । सिंहासण दीपे दोनों बैठारी ॥ जय ॥ २१ ॥ सुखे २ दोनों रहे एक स्थाने। लघु जेष्ट अनुज्ञा मझारी ॥ जय ॥ २२ ॥ देख भक्ति तुष्टया जयजी विजय पर । मणी औषध
तस स्मर प्यारी ॥ जय ॥ २३ ॥ निश्चिन्त रहे सुख भोगे इच्छित । राज तिहूं को IN संभारी ॥ जय ॥ २४ ॥ ढाल इक्कीसी गाइ अमोलक । पुण्य फल सदा मुखकारी ।
॥ जय ॥ २५ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ एकदा विजय रायजी । सुख सेजा के माय । सूता