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ज०वि० भणी । यक्ष देव संतुष्ट थाय होराजिन्द ॥ सुणी ॥ २॥ जेष्ट भाइ कपटे गया।
तुम पाया यहां राज हो राजिन्द ॥ कहो में कहूं सो सत्य है । राख्या वीत
क काज होराजिन्द ॥ सुणी ॥ ३॥ सुणी विजय वीतक कथा । आश्चर्य अधिको । Mलाय होराजिन्द ॥ अहो ज्ञानी ये पूरो गुनी । भाइ गुन चित श्राय होराजिन्द ॥ | सु॥४॥ हृदय भरणो मोह वस्ये । नत्रे नीर वषोय होराजिन्द। पूछे अति नर
माय के । मुझ बंधव छ किणठाय होज्ञानी ॥ सु ॥ ५ ॥ कब दिन ऐसो ऊगसी। N/ मिलसी पूज्य मुझ भ्रात होज्ञानी ॥ शीघ्र बतावो मुझ भणी । अति उपकार मोपे
थात होज्ञानी ॥ स ॥६॥ कहे नीमति फीकर तजो । जयसेण सदा जय माय होराजिन्द॥विदरामणी के प्रशाद से। तास कमी कछु नाय होराजिन्द॥सु॥७॥ । सो सुखमें लुब्धा रह्यो।दुष्कर मिलण तुम ताय होराजिन्द॥क्या करोगा तिणसे मिली
तुभने कमी छे काय होराजिन्द॥सु॥८॥यों सुण दिलगीर हुवा अति।कहे तस विन फीको सुख होज्ञानी ॥ सफल दिन ते जाणस्यूं। देखस्यूं बंधव मुख होज्ञानी॥सु॥६॥