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________________ जानि ० पु ॥ २१ ॥ हिवे पस्ताइ लाभ क्या लीजीयेरे । महाराजा बनू सो उपाव कीजीयेरे ॥ पु ॥ २२ ॥ यों निश्चिन्त हुया सतरमी ढालमारे । अमोल अाशा फले पुण्य अल्प कालमारे ॥ पु ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ रूप परावर्ती प्रथम में । देखू ।। भाइ प्रेम ॥ मंत्र लेइ साधन करी । पावू इच्छित खेम ॥१॥ मणी प्रभावे तत्क्षीणे । निमंती रूप बनाय । शुभ्र वस्त्र सजीया तने । भाले तिलक लगाय ॥२॥चक्री बन्धि पागडी । गले रुद्राक्षकी माल । कर बहुरंगी टीपणो । जानोइ गलडाल ॥ ३॥ आकाश में उड चालीया । उतर्या कामपुर प्राय । मिलिया हर्षी विजयको।। आशिरवाद सुनाय ॥ ४ ॥ प्रेम परिक्षा कारणे । करे वचन ऊचार । ते सुणीये श्रोता सह । लघु विनय प्राचार ॥ १॥ * ॥ ढाल १८ मी ॥ नणदलरा नगदल ॥ यह० ॥ में जाणं विद्याबले । तुमलोबंधव दोयहो राजिन्द । तात अपमाने नीकल्या । मार्गफल अति होयहो राजिन्दा । सुणीयो हमारी वारता ॥ ये ॥ १॥ वनमें वृद्ध वट के तले । रह्या सुखे निशी श्रायहो राजिन्द । तीन वस्तुही तुम
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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