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________________ ज०वि०॥ निमन्ति भणे विद्या बले । देवता को ले सहाय हो राजिन्द ॥ कहो तो बुलावं ! ६७ । इण जगा। तुम वन्धव क्षीण माय हो राजिन्द ॥ सु०॥ १०॥ परन्तु उनके जाये से। तुमने होवेगा दुःख हो राजिन्द ॥ कारण जेष्ट ते तुमथकी। इच्छा । । चारी को जासे सुख हो राजिन्द ॥ सु० ॥ ११ ॥ तुम हित भणी पहिला कहूं । जो अखणुं सुख चहाय हो राजिन्द ॥ तो दोनों रहो जुजुवा । जिनसे विघन नहीं प्राय हो राजिन्द ॥ सु०॥ १२ ॥ यह प्रश्न ने छोडके । अन्य पूछो सुख उपाय IN हो राजिन्द ।यों सुणकर विजय जी देव किम यों बोलो विबुधराय हो ज्ञानी ॥ सु०॥ १३ ॥ मतलबी प्रीति विषे । इन बचने पड है विरोध हो ज्ञानी ॥ सत्य प्रीति जिनके मने । तास न कीजिये बोध हो ज्ञानी ॥ सु० ॥ १४ ॥ यह संपति | सब भाइ को । अर्पण करण ने तैयार हो ज्ञानी ॥ पण वांछे नहीं मुझ बन्धवो । निर्लोभी गुण अागार हो ज्ञानी ॥ सु०॥ १५ ॥ जैसे तात लघु बाल को संखडी में भरमाइ जाय हो ज्ञानी ॥ त्यों इन राज में भोलवी । गया मुझ छिटकाय हो
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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