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विजय बधाइ । धन्य २ नर महापुण्यात्मा। धन्य बाइ की पुण्याइ होराज ॥ अहो ॥ १८ ॥ अति उत्सवे पुनः शहर में लाया । दिया तेही मेहले उतराइ । सर्व जन ।। गया निज २ स्थाने । वायुजों कीर्ती फैलाइ होराज ॥ अहो ॥ १६ ॥ तीनों रत्न बहू गोपी रखे जय । रखे फिर जाय खोवाइ । रहे अानन्दे सज्जन सम्बन्धे । चिन्ता दुःख विरलाइ होराज ॥ अहो ॥ २० ॥ ढाल दश पर पांच शिरोमणी । | ऋषि अमोलक गाइ । श्रोता भरीये सुकृत्य खजाने । पुण्याइ काम अाइ होराज ॥ अहो ॥ २१ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ पुनः अति प्राडंबर कियो । जयती और पुरराय । भोगनी पुत्री जय भगी। शुभ लग्ने परणाय ॥ १॥ शतगज तुरंग सहश्रदश । दायजा में दिया राय । गाम जागीर दीया घणा । हाथ खरच के तांय ॥२॥ महापुण्यात्म दम्पति । जोडी जोगी मिली प्राय । खामी नहीं कोई सुखकी । संचित सम फल पाय ॥ ३ ॥ नित्य नवला सुख भोगवे । दोगुंदक सुरसार । मणी NT पसाये सामुग्री । होवे सब तैयार ॥ ४॥ भोगवे तो अन्यने । देइ इच्छित दान।