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ज०वि० होनहार आगे सुनो। श्रोता लगाइ ध्यान ॥ ५ ॥ॐ ॥ ढाल १६ मी ॥ महारे ६३ अाज अानन्दनो दिन छेजी ॥ यह० ॥ पुण्यवन्त कुं बोल सहे नहींरे । चातुर ने
| चिन्ता होवे सहीरे ॥ पुण्य ॥ १॥ एकदिन सजाइ उत्तम सजीरे । निकल्या फिरवा ।। जयजी पुरमा गजीरे ॥ पुण्य ॥ २॥ हय गय पायक बाजा बहूरे । शोभे राज IN साहबी तस सहूरे ॥ पुण्य ॥ ३॥ मध्य बजारे जब सो अावी यारे । पुरजन देखण |
अति लोभावी यारे ॥ पु ॥ ४ ॥ ठठ जम्यो बजार के मायनेरे । जोवे गोरडीयों
गोखे आया नेरे ॥ पु ॥ ५ ॥ तामें नारी एक बोली जो रासभीरे । ऊंचे श्वर करी MM । ज्यों सुने सबीरे ॥ पु॥ ६॥ क्या देखो सबी ऊपर चडीरे । अपणा राय जमाइ | ये खबर पडीरे ॥ ॥ ७ ॥ घर जमाइ सदाइ रहे इहारे। किस्यो देखणो यह जावे Lal
किहारे ॥ पु ॥ ८ ॥ शब्द स्पोए जय कानमारे । लज्जा पाया चिन्ते नीति a मानमारे ॥ पु॥६॥ॐ॥ श्लोक ॥ उत्तमा स्वगुणे ख्याता मध्यमा स्तुपितुर्गुणे।
अधमा मातुले ख्याता स्वसुरेर धमाधमा ॥ १ ॥॥ ढाल ॥ यों बिचार मुख