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ज०वि०
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विष सहू विरलावियो ॥ होसु ॥ विष ॥ निद्रागत की पेर कुमरी सावध हुइ ॥ होसु ॥ कुम ॥ हर्यो सब परिवार | चिन्ता चारत गइ || होसु ॥ चिन्ता ॥ १६ ॥ नरवर पुरजन सबी । श्रति पाविया ॥ होसु ॥ श्रा ॥ वावनजी की करामात । सबी सरसावीया ॥ होसु ॥ सबी ॥ करामाती वावना भक्त । विरला जग तुम मम ॥ होसु ॥ वि० ॥ चमत्कार प्रत्यक्ष | देख सब मन रमा ॥ होसु ॥ देख ॥ |२०|| महीमा फेली पुर माय । हंसक शरमावीया ॥ होसु ॥ हंस ॥ पुण्य पसाये जयजी का हुवा चावीया ॥ होसु ॥ हुवा || यह हुइ तेरवी ढाल । रसाल कौतक ती ॥ होसु ॥ रसा ॥ कहे अमोल अणगार | आगे मीठी घणी ॥ होसु ॥ आगे ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ नव जीवन कन्या लियो । हयों सब परिवार ॥ वावन भक्त तणो सबी । मान्यों अति उपकार ॥ १ ॥ आर्ति टली आँखो खुली | हुवो राय ने विचार ॥ अहो प्रभु इस स्थान के । वचन पडे कैसे पार ॥ २ ॥ चन्द्र कला सम बाइ मुझ । यह राहू प्रत्यक्ष ॥ गुण अन्तर मही अन्त लिख ।