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________________ ज०वि० कैसे जोडे ए दक्ष ॥ ३ ॥ अजब गति करतार की । विरूप अर्को गुण ॥ गुणी ५६ यह रत्न अमोल है । चिन्ता में पडयो निपुण ॥ ४ ॥ बोल्या भी पलटे नहीं। जे क्षत्री मुख वेण ॥ खाड श्राड विच में पड्यो । कीजो किस्यो अब सेण ॥५॥ N ॥ ढाल १४ वी ॥ तावडो धीमो सो पडजे ॥ यह०॥बडे नर बचन को निभावे । हो ॥ बड़े नर०॥ पुण्यवन्त तो नाना कहता। अलभ्य लाभ पावे ॥ टेर ॥ वचन । भंग से यश भंग होवे । परतीत नहीं राही ॥ विन प्रतीत अपमानी बने। ते मुरदा । तुल्य थाइ ॥ बडा ॥१॥ कन्या का संचित प्रमाणे । पति मिल्यो यह आइ ॥ | यत्न महारा चले किसा यहां । होत बसो थाइ ॥ बढा ॥ २॥ आतुर होइ बोले वावनो । बचन पार पाडो ॥ नहीं तो में जावु निज स्थाने । मन की वाहिर | काडो॥ बडा ॥३॥राजाजी दिग मुढ हो रहीया। हां ना नहीं बोले ॥ चिन्ता सागरे गोता खावे । केइ विचार तोले ॥ बडा ॥४॥ तब वावन कहे चिन्ता । मत करो। में भी योंही जाणू ॥ मुझने राज कन्या नहीं शोभे । कूरूप तन न्हा
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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