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________________ जं०वि ५४ ॥ होसु ॥ थारी ॥ मत कर फोकट फंद । अपमान तूं पावसी ॥ होसु ॥ अप ॥ राय न देवे तुझ पुत्री । पछे पस्तावसी ॥ होसु ॥ पछे ॥ १५ ॥ तब कहे हंसीने कोय । अन्त राय न कीजिये ॥ होसु ॥ अन्त ॥ जरूर परएसी एह । इच्छा पूर्ण दीजिये || होसु ॥ इच्छा ॥ यों हंसता आया राय पास । अरदास वावनो करे ॥ हो ॥ ॥ में करूं बी विष दूर । बचने दृढ रीजिये ॥ होसु ॥ वच ॥ १६ ॥ दी आज्ञा भूपाल | या कुमरी कने || होमु ॥ श्राया ॥ बूंटी ली कर मांये । ढोंग जमा बहूत ॥ हो || ढोंग || मोठे स्थान चादर ढोंग से पावइ ॥ होसु ॥ ढोंग | धूप दीप अक्षत | आदि मंगावइ || होसु ॥ श्रादि ॥ १७ ॥ उदक मिश्रि औषधी कर | पूछे भूपसे तिहां ॥ होसु ॥ पूछे || उद्घोषण पुर मांय । किसा आपने किया ॥ हो । किसा ॥ भूप कहे करो आराम | जरूर परणावस्युं ||होसु ॥ जरूर ॥ वावन कहे दृढ रखो बचन । वदे जिन भावस्युं ॥ होसु ॥ वरे ॥ १८ ॥ बड २ ता मुख मंत्र | पाणी सो पावियो || होसु ॥ पाणी ॥ ताही क्षीण के मांय ।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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