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________________ ज०वि० शुभ वस्त्र सजा तन । जेष्टिका कर विषे ।। होसु ॥ जैष्टि ।। चंदन तिलक लिलाट । ५३ - माल गल में दिशे ॥ होसु ॥ माल ॥ ११ ॥ एक हाथे करताल । बजावे चूंपसे होसु ॥ बजा ॥ दुजे हाथे फिरे माल । चले भक्त रूप से ॥ होसु चले ॥आये मध्य । IN बजार । देखण लोक बहू जम्या । होसु ॥ देख ॥ हंसे हंसावे सब तांय । वावन । जी मन रम्या ॥ होसु ॥ वाव ॥ १२ ॥ पडह बातो सुण । कारण सब पूछिया ॥होस । कार ॥ विस्तारी हुइ बात । भक्त ने जन किया होसु ॥ भक्त ॥ वावनो कहे करूं आराम । क्षिणेक के मायने । होसु ॥ क्षीण ॥ देखो करामात मुझ । सर्व । तहां आयने ॥ होसु ॥ सर्व ॥ १३ ॥ सबी कहे भक्तजी मन । भक्कणी चाविया ॥ al होसु ॥ भक्त ॥ राय कन्य जोग जोडो । येही जग पाविया ॥ होसु ॥ येही ॥ वरीयां विन कैसे रेय । सुरूपा इन सारखा ॥ होसु ॥ सुरू ॥ यों हंसे सब लोक । क्या जाने पारखा ॥ होसु ॥ क्या ॥ १४ ॥ कितनेक दाने शाणे प्राय । शिक्षा । देवे इसी ॥ होसु ॥ शिक्षा ॥ गये करामाति बहुत हार । तो थारी चली किसी
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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