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________________ ज०वि० ५२ काज ने || हो० ॥ छोड़ || बोलाया भोपा वैद्य । लेइ सब साज ने || होसु० ॥ लेइ ॥ ७ ॥ मंत्र मंत्र जडी जाण । वैद्यादि घणा श्रावीया ॥ होसु० ॥ वैद्य ॥ पणी सब करामात । उमंगे अजमावीया ॥ होसु० ॥ उमं ॥ किया बहुत उपचार | लगार लगे नहीं || हो० ॥ लगा || थाये उनकी उमंग । मेहनत निष्फल गइ ॥ होसु० ॥ मेह ॥ ८ ॥ श्रार्त प्रति करे राय । निरासा धारी मने || होसु० ॥ निरा ॥ चिन्त से क्या होय । सचीव नरमी भने ॥ होसु० ॥ सची ॥ कोह यत्न करो शीघ्र राय । ज्यों रत्न यह रहावाइ ॥ होसु० ॥ ज्यो || बहु रत्न वसुंधरामांय । उपकारी को पावई ॥ होसु ॥ उप ॥ ६ ॥ उद्घोषणापुर माय । राय करावई || होसु ॥ राय ॥ करे मुझ तनुना खुशाला तास परणावर ॥ होसु ॥ तास | पडह बाजायो पुर मांय । श्राय उमंगी घणा ॥ होसु ॥ ते तले जयजी तहां चाय । शब्द सुण पडा तथा ॥ होसु ॥ शब्द ॥ १० ॥ देखाने चमत्कार | रूप बावनो कियो | होसु ॥ रूप ॥ लघु देही दीपे पुष्ट । वरणे सांवलियो । होसु ॥ वरणे ॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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