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ज०वि० ५१
हुलसित अंग कामणी । होसु• ॥ हुल ॥ ३ ॥ सज सोलेह सिणगार । भार वस्त्र भूषणो ॥ होसु० ॥ भार ॥ मात पठाइ तात पास । वर दो सुलक्षणो ॥ होसु० ॥ वर ॥ कन्या रूप वयं जोय । राय चिन्तातुर भया ॥ होसु० ॥ राय ॥ किसको परणानुं धीए । सर्व गुण गणमया ॥ हो० ॥ सर्व ॥ ४ ॥ जो गुणवन्त मिले जोग । भोग सुख पावइ ॥ होसु• ॥ भोग || अप लक्षणी संयोग | जन्म दुःखे जावइ ॥ होसु• ॥ जन्म ॥ पुत्री को देइ सीख । सचीव बोलाइया ॥ होसु०॥ सची ॥ धूया वर विचार | एकन्त वैठाविया ॥ होसु० ॥ एक ॥ ५ ॥ तेतले अचिन्त्य व्याल । विकराल तहां आवीया ॥ होसु० ॥ विक ॥ कुमरी जाती थी मेहल मांय । रस्ते में सोचाविया ॥ होसु॰ ॥ रस्ते ॥ मुरलाइ पडी भूंपूठ । टूटे ज्यों तरुलता ॥ होसु० ॥ टूटे ॥ दोड दासी भूप पास । दाखी कुमरी कथा || होसु० ॥ दाखी ॥ ॥ सुप भूप आश्चर्य पाय । खेद अति लावीयो ॥ होसु० ॥ खेद ॥ तत्क्षिण या तहां जोय । हीयो थररावीयो ॥ होसु० ॥ हीयो ॥ सब याया तहीं दोड । छोड काम