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________________ ज०वि० ४८ । जो चहीये सो ही कहे । धूर्त हर्षी करे उचार ॥ भ ॥ ८ ॥ श्वामीजी मुझ पास एक मूल । गुण विधि तस प्रकासीये । ते किम होवे मुझ अनुकूल ॥ भ ॥ ६ ॥ कहाडी दी जोगी करेजी । कुमर देख हर्षाय । प्रत्यक्ष शकुन फलित थया । गइ औषधी मिली पुनः आय ॥ भ ॥ १० ॥ जय पूछे सत्य की जीय । यह कहां से आइ तुझ पास धूर्त प्रति नरमी करी । कर जोडी करे - रदास ॥ ॥ ११ ॥ श्वामी इहां से सत योजने जी । रहे एक जोगी राज । में सेवा तस साचवी । ते प्रसन्न हुवा घाज ॥ भ ॥ १२ ॥ ति ए औषध मुझ दीवी जी । गुण क्या कह्यो एम । जा तूं शीघ्र उत्तर दिशा । महा जोगी मिलेगा प्रभु प्रेम ॥ भ ॥ १३ ॥ ते कहेगा तुझने सहू । इस बूंटी में गुण अपार । में आयो आप चरण में | फरमावो गुण जे सार ॥ भ ॥ १४ ॥ एक प्रभाव तो इण तणोजी अनुभव हुवो है मोय । जब से इ मुझकने । तव से मुझ मन खिन्न होय ॥ भ ॥ १५ ॥ अरूण नयणे जय जी वहै रे दुष्ट तूं दिखता चौर । तव ही दुख यह सुझ
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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