SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .४६ ज०वि० जी स्थाने गया । कुमरी पडी सोच माय रे भाइ । वियोग साले पति तणी । पण गुणी जाणी हर्षायरे भाइ ॥ धि० ॥ १६ ॥ वह अन्तराय कभी टूटसी मुझ । मि. लसी आइ भरताररे भाइ । शील पसाये सुख पामस्युं । रही दृढ पतिव्रत धाररे IN] भाइ ॥धे ॥२०॥ रे वाइ भूमी सयन पाहार एक टंक । तज सिणगार धर्म ध्यान ध्यायरे भाइ । अमोल कही ढाल बारमी । कांइ विश्न तज्यां सूख पायरे भाइ Tilधि ॥ २१ ॥ दोहा ॥ मणी प्रभाव कुमरजी । रूप परावती कीध । वृद्धवयी जोगी बण्या। सामग्री सब सिध ॥ १॥ जटा झुट दीर्घ काबरी । अंबर भगवां । N/ अंग। भस्मी रमी भाले तिलक । वैराग्य नेत्र रक्त रंग ॥ २ ॥ गले दाम कर स्मरAणा । तुम्बि झोली कांख । चिमटा दंड करमे धरा । ईस नाम मुख भाख ॥ ३॥ लंगोट तंग अनंग जय । पगमें ऊंच खडाव । पुष्ट ऊंच तनभाल दिव्य । करे सो रण में पडाव ॥४॥ स्वेच्छा भूखग फिरे । पेखे पुर वर ठाम ॥ आनन्दे काल निर्गमे । अब कहू पुण्य परिणाम ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल १३
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy