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________________ ज०वि० ४५ IN भाइ ॥ सब तर्जनी से बतावसी । हुयो कुमर मने अति दुःख रे भाइ ॥ धि ॥ । १२ ॥ रे भाइ मही भाग दे अबी मुझ भणी। तो पेदूं में प्यारे उद्रे भाइ ॥ रा जाजी किस्यो जाणसी । निकल्यो महारो जमाइ क्षुद्र रे भाइ ॥ धि ॥ १३ ॥ रे । भाइ राज घरे जाणो नहीं । वली इहां पण रहणो नथायरे भाइ॥लज्जा जीवित । दोइ रहे । ऐसो करूं में हिवे उपाव रे भाइ ॥ धि ॥ १४ ॥ मणी तणे प्रभाव से । K गया गगने उडी देसंत्र रे भाइ ॥ स्वदेश की चोरी थकी । भीक्षा भली कहे | अन्यत्र रे भाइ ॥ धि ॥ १५॥ रे भाइ आश्चर्या गणिका चुप रही। चुप चाप गया । । प्रधानरे भाइ । बात वीती कही जयतणी । ते सुण विसम्या राजान रे भाइ | ॥ धि ॥ १६ ॥ रे भाइ कुलवन्त कुमर लाजी गयो । हे पुण्वयन्त विद्या भरपूर | रे भाइ ॥ चिन्तामत कर मुझ लाडली । तुझ ने कन्त मिलसी जरूरे भाइ ॥M | धि ॥१७॥रेभाइ गुणवन्त सज्जन वीसरे नहीं। दुर्गुणी से नहीं पलै प्रेमरे भाइ । इत्यादि योग्य बचन थी । कुमरी पाइ चित खेमरे भाइ ॥ धि ॥ १८ ॥रे भाइ राजा
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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