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________________ ज०वि०/ पाउसे । सुणी अक्का डरी दिल में । धमकी राय जमाउनी । कहे वक्ता सुणो श्रोता । जयजी के पुण्य सहाही ने ॥ ७॥ देविक वस्तु हो धर्मी प्राणी ने । इ- II च्छित आये । न आपे अन्नाणी ने ॥ चाल ॥ अन्नाणी वैश्या ने तिस्कारी। कहे | सभ एकठा मिली । जावो देवो कुमरनेमणी । जो तूम चावो मनरली । नहीं तो | पूरो विचार करजो । वे हुवा राज अधिपति । कहे वक्ता सुणो श्रोता । जेष्ट दु खायां कुगति ॥ ८॥ अक्का घाबरी श्राइ कुमर कने । रुदन करती हो कर । जोडी भणे ॥ चाल ॥ जोडी कर कहे कुमर से खमो अपराध देव माIN| हेरो । परवस्य हुइ में मदिरा जोगे कियो गुन्हो बहु थायरो । अहो नाथ हम ने श्राप छन्डी । मन्डी प्रीति राज बाइसे । कहे वक्ता सुणो श्रोता। कौन हमारो सहाइ छ ॥ ॥राज प्रताप से श्राप मोहित भया । गरीव की सेवा और सुख | भूली गया ॥ चाल ॥ भूलिया ज्यों स्वर्ग जाइ निज कुटम्ब भूले सही। त्यों हमा । री सारन लीधी घणी किसी जावे कही ॥पण हमारे आप एक हो। आधार दूजा |
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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