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________________ ज०वि० ३६ । देवे दीधी देव देशी । पुण्य थी कुछ न्यून नथी । यों ज्ञान से चित्त स्थान लान कर सुखे रहे कुमर सही । कहे वक्ता सुणो श्रोता। ज्ञान पदार्थ सुखदह ॥ ४॥ || हिवे ते अक्कारे वैश्या एकदा । धन इच्छा धर पूजी मणी तदा ॥ चाल ॥ पूजे || N मणी इच्छा घणी धन देवो देव हम भणी । पुण्य विन देव तुष्टे नाहीं। किम NI पूरे इच्छा तेह तणी । फूटी कोड़ी धन नही मिल्या से । मन में अति पस्तावइ ।।।। कहे वक्ता सुणो श्रोता दगाबाज दुःख पावइ ॥ ५॥ पुत्री निर्भरे माधि क्क तुझ भणी । पुण्यवन्त कहाड्यो में जाणी बुद्धि तुझ तणी ॥ चाल ॥ तुझ तणा बुद्धि | भृष्ट भइ । हाथ आयो निधी खोइयो । मुझ बल्लभ को अन्तर पाडहो । हृदय अति मुझ रोइयो । हिवे तस छोडी अवर न वांछु । निश्चय मुझ मन यह सही। कहे वक्ता सुणो श्रोता । प्रिती यों जणावइ ॥६॥ सब परिवार हो निन्दे अक्का भणी । धिक्क २ बुढी रे कहाडयो पुण्य धणी ॥ चाल ॥ पुण्य धणी हुवा राज । * जमाइ । हिवे एहवी खोउ कहाडस्ये । धन लूंटी निकाली कूटी । फोडा बहुत ही
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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