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ज०वि०
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जगा तदा ॥ चाल ॥ तदा तिहां खूंटी न पाइ । धस्काइ घबरावीया । कहाँ गइ कोई हर कीनी । शोक इम बहू आवीया । न देख्यो भट जोवायो तब । तास पत्तो नहीं पावीयो । सुणो श्रोता कहे वक्ता । धूर्त तेहने ठेराबीयो ॥ १ ॥ कुमर चिन्तातुर चिन्ते चितने । धिक्क २ होजोजी कपटी मिंतने ॥ चाल ॥ कपटीमिंत विश्वास पमाडी गमाडे वित आपणो । सेवा साधे वयण राधे करे कार्य बहुल पणो । आखीर घातक पातक करके चिन्ता ज्वाला सिलगावई । कहे वक्ता सुणो श्रोता कुमित्र काम न आवह || २ || शोक कियां से हो पाछो न पामीये । समता रखे तो सुख मिले नामीए ॥ चाल ॥ नामी फल मिले समता से । औषधी को फल में लियो । बहू गुणवन्ति राज कन्या । पाणी ग्रहण इण से भयो । गयो sis आपणो | यह लाभ से हर्ष आवइ । कहे वक्ता सुणो श्रोता । समता से सुख पावइ || ३ || देव जो दीधी हो दिव्य मणी श्रोषध । सो कैसे जावे हो छोडी ने पोषध ॥ चाल ॥ पोशक छोड़न जावे कवहू । दोडी मिलेगा पुण्य थी