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जवि०
| संस्कारो ॥ पु ॥ २२ अति उत्सवे जेतश्री परणाइ । उत्तम मेहल दीया रहवा * ताइ । वस्त्र भूषण. दास आदि सुख सारो ॥ पु ॥ २३ ॥ दो गुंदक सुरवर की | परे। जयजी नित्य प्रत मोज करे । गुणवन्ती मिली छे गुण धारो ॥ पु॥२४॥
अचिन्त्य फले करी पुण्याइ । दाखी। ढाल दशमी मांइ। ऋषि अमोल करे ऊचारो॥ पु ॥ २५ ॥ दोहा ॥ तिण ही पुर माहे रहे । धूर्त एक सिरदार ! तृष्णा से | प्रेर्या अति । कपट कला भन्डार ॥१॥ जय महिमा तिण सांभली । औषधी | को प्रभाव । ते लेवण इच्छा जगी । रचीयो तब ही उपाव ॥ २॥ क्षत्री रूप ।
सामे करी । रह्यो आजयजी पास ॥ विनय विवेक भक्ति करी ।कीया कुमर वस्य 1 खास ॥ ३॥ जयजी भद्रिक भाव से । रीज्या गुण तस जोय । गुप्त कछु राख्यो 10 नहीं। दीठी जडी ते सोय ॥४॥हयों अवसर पाय के। ले गयो तेह उठाय।
जयजी भेद न जाणीयो । सरल पणे सुखे रहाय ॥ ५ ॥ ढाल ११वी ॥ पहिले । संवर जिन वर यों कहे ॥ यह ॥ कोइक कारण उपनो एकदा। पेखे औषधी रक्खी