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________________ ज०वि० को नही । कहे वक्ता सुणो श्रोता । स्वार्थीयों बोले सही । भानू अस्ते जी कमल ज्यूं कूमले । त्यों तुम विरह थी पुत्री मुझ टलबले ॥ चाल ॥ विल विले चेन | जरा नहीं पडे । वियोग अग्नि से जल रही । संजोग रूपी नीर सींची। शीतल करो दया लही । तुम वियोगे मरण पासी । अति कर संताप थी । कहे वक्ता सु. को श्रोता । सुखी होसी वेद्य श्राप थी ॥ ११ ॥ एक काम वली है म्हारे सही ।। श्राप विना ते अन्य ने कहवो नही ॥ चाल ॥ नहीं कहवो बल्लभ विना किस । * ने । नहीं अन्य तुम सारखो । महा मणी हमे घर में लाधी नहीं जाणा हम पार । खो। तेह भणी हम तुम ने आपां लीजीये कृपा करी । कहे वक्ता सुणो श्रोता। कुमर हर्ष्या देखि सिरी ॥ १२ ॥ मा फिर बोली हो तुम होता जदा । हमने नि त्य नवी वस्तु देता तदा ॥ चाल ॥ वस्तु नित्य नवी देता हम ने । तुम ने यह कारण आपीये । अन्य हमारे नहीं तुम सरीखो। चाकर कर ढिग थापीये । कृपा करी मुझ घर पधारो। पतीत पावन कीजीये । कहे वक्ता सुणो श्रोता । स्वार्थे
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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