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________________ ज०वि० हुइ निराश अति दुःख धरती । अन्य नर नहीं चित्त चाया ॥ क०॥ २२ ॥ बीच घरे उत्तम आचरणी । यों पुण्यात्म पावे । ढाल यह नवमी गाइ अमोलकं । शीघ्र शीले सुख पावे ॥ क०॥ २॥ * ॥ दोहा ॥ गुप्त स्थान जयजी चिते । | ध्यावे आर्त ध्यान । नीच नारी संगत करी। पायो में अपमान ॥१॥ अमूल्य महा मणी गइ । छुट्यो प्रेमला संग ॥ नीच परमा हेरो । कियो मन इन भंग ॥ २॥ किहां जावू किणने कहू । करूं अब कांइ उपाय ॥ आफस्यो कर्म जाल में । हे प्रभु अब करूं काय ॥ ३॥ विश्वासी मणी संगथी। छोट्या बंधव | N/ संग । ते गइ सब सुख लेइ मुझ । अब होसी किस्यो ढंग ॥ ४ ॥ कर कपोल । दृष्टि मही । नयणे नीर बहाय ॥ देखो पुण्यात्म प्राणीया। शीघ्र ही सब सुख पाय ॥ ५॥ ढाल १० वी ॥ ब्राह्मी ने सुंदरी दोनों बाइ । यह॥हिवेतिण अवसर ।। ने मांइ । जेत्रमल राजारी जेत श्री बाइ । खेले सखीयों ने मझारो ॥ पुण्य वन्त ने सुख मिले श्रेयकारो ॥१॥ खेलती नदी ने तट आइ । सखीयों साथ ते पण
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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