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ज०वि०
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माय ॥ क० ॥ १४ ॥ इन पुण्यवन्त को नहीं छोडूं । जवलग जीव तन माय । धन इच्छा किंचित नहीं मुझने । गुणवन्त की है चहाय ॥ क० ॥ १५ ॥ पूर्वो पार्जित कोइ पुण्य जोगे । यह पाया अपने द्वार । अपार द्रव्य दियो अपने ताइ । किम कहाडी जे बार ॥ क०॥ १६ ॥ कृतघ्नता को पातक मोटो । निर्दय काम न कीजे । तुम दानी श्याणी सहू समझो । मुझ ऐसी शिक्षा न दीजे ॥ क० ॥ १७ ॥ तो पण त्रुद्धि बात न माने । ताणे अपनी रुढ । वार २ कहे निकाल जल्दी । लोभ वस्य हुइ मुढ्ढ ॥ क०॥ १८ ॥ कामलता तो जरा न माने । करे नित्य नवल विनोद । ते देखी अति डोसी प्रज्वले । करवा लागी विरोध ॥ क० ॥ १६ ॥ कामलता ने कामे पठाइ । जयजी को कियो अपमान । कर झाली कहाड्या घर बाहिर । बोली हलकी जबान ॥ क० ॥ २०॥ कुमर सदन तज भारत धरता । जा बैठा गुप्त स्थान । कामलता प्राइ पति न दीठा । कीनो बात ध्यान ॥ क० ॥ २१ ॥ निज दासी हाथे ढुंढाया। पण कुमरजी नहीं पाया।