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ज०वि०
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न्हाइ ॥ वस्त्र सजी निकली बारो ॥ ५० ॥ २ ॥ कुमरी ना अशुभ कर्म जाग्या । अचिन्त्य पीशाच तस अंग लाग्या । मुरही पडी धरणी तत्कालो ॥ पु ॥ ३ ॥ जैसे वृक्ष ती तूटे शाखा । मुख फाटो विकराल यांखा | देखी सखीयों डरी अपारो ॥४॥ के दोडी आइ राजाजी पासे । वीतक बात सब प्रकाशे ॥ घबरायो भूप सुणी समाचारो ॥ पु ॥५ ॥ तत् क्षीण आया कमरी पासे | देखी चेष्टा हुवा उदासे । सज्जन प्रजन मिल्यो परिवारो ॥ पु || ६ || केइ रोग केइ दोष बतावे । यो केह hs तरह बैमलावे | लाया उठाइ भवन मझारो ॥ पु ॥ ७ ॥ मंत्र तंत्र मंत्र वादी घणा आया । डोरा दांडा धुप दीप केइ लगाया | औषध भवद करे उतारो ॥ ॥ ८ ॥ भोपा बाबा वैद्य सब हर्या । एक ही गरज नहीं सार्या । निकम्मा भया सहु उपचारो ॥ पु ॥ १० ॥ वेदना अधिक बढन लगी । चेष्टा विगाड़ी मरण भीती जागी । मचो मे हल में हाहा कारो ॥ पु ॥ ११ ॥ नृप राणीया भाइ भोजाइ । सहूने प्यारी अति बाइ । कर्म आगे सब लाचारो ॥ पु ॥ १२ ॥ सचीव कहे मही पति तां ।