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ज०वि० सुख सवाया । गज विजय पुण्य पर खायारे लो॥ सूंडे से गीरी कुंभ स्थले २४ । बैठाया । उंच उंचो पद पायारे लो ॥ पुण्या० ॥ १॥ कुसुम वृष्टि सुर करी कुमर
पर । राज भूषणे सजायारे लो । प्रत्यक्ष देव प्रभाव यह देख के । सज्जन सहु हर्षायारेलो ॥ पु० ॥ २॥ पुण्य पोरषा जाणी विजयते । जय २ शब्दे बधायारे
लो। पंच शब्द वाजित्र बाजे । विरुदा वली बोलायारे लो ॥ पु०॥ ३॥ रूप 1 तेज बल आकृति निहाली । नम्या सामांत भूपालीरेलो । हर्षी प्रजा मुखे
चडीलाली । भांगी चिन्ता कंकालीरे लो ॥ पु० ॥ ४॥ आकाश में बोले देव वाणी । यह छे उत्तम प्राणीरेलो । सहूजन पाल जो राहनी आणा । जो चावो सुख खाणीरे लो ॥ पु० ॥ ५॥ यों सुण अरिजन त्रास जो पाया। नमीया तत्क्षीण पायारे लो । पुरेन्द्र सम प्रताप जम्यो तस । मेहले चालण सज थायारे
लो ॥ पु०॥ ६ ॥ तब कहे विजये सब धैर्य धरीये । एक महारी कही करियेरे | लो । मुझ जेष्ट बन्यव गुण गण दरिये । तास हुकमें अनुसरी येरेलो ॥ पु०॥