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________________ ज०वि० | थोड़ी वार से मैं भी श्रावूगा । विजय सरल प्रकृति । मानी वयण चाले कामपुर । २३ ।। में । विसरी बात चिति ॥ देखो० ॥ १८ ॥ आये पुर में तापे घबराये। बैठे एकांत क्षीति । मार्ग प्रेक्षा करे बड़े भाइ की । प्रेक्षे नगर प्रति ॥ देखो० ॥ १६ ॥ पुण्य फले ये इसी नगर के । होवे अबी ही पति । कह अमोल सुणो अहो श्रोता। षष्ठी ढाल इति ॥ देखो० ॥ २० ॥ दुहा ॥ ते अवसरे ते पुरपति । अपुत्र्यो मरण पाय । अन्यने गादी दिया विना । दहन क्रिया न थाय ॥ १॥ सामान्त मिल । सम्मति करी । पंच द्रव्य संग लेय । फिरे तदा राजपुर विषे । पुण्यात्म कोइ छेय N॥ २॥ राज लालसा बहुत धर । द्रव्य सन्मुख बैठे अाय । संचित विन किम पामीये । द्रव्य अपूठा जाय ॥ ३॥ फिरता २ प्राविया। जहां बैठा विजय कुमार । । दैव जोग तस ऊपरे । वूठा द्रव्य श्रेयकार ॥ ४ ॥ गज गरज्यो हयवर हिंस्यो। कलश ढुला सिर प्राय । छत्र छयो चामर ढुले । सब सानन्द देख पाय ॥ ५॥ ढाल ७ वी ॥.अाज अानन्द घन जोगीश्वर श्राया ॥ यह चाल ॥ पुण्यात्म को
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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