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________________ क्यों कि-सम्यक्तव किसी-मत में-भेषमें-किरिया में या ढोंग में नहीं है परन्तू-एक यथार्थ श्रद्धानमें है. जो जीवादि पदार्थों का निश्चयिक व्यवहारिक द्रव्यादि सामाग्री प्राप्ति के योग्य-यथार्थ (जैसाहै वैसाही) श्रद्धान (जान पने युक्त परितीत) करतेहै वोही सच्चे स सम्यक्त्वी कहलातेहैं. कि जिनोंकी आत्मा रागद्वेष विषय कषाय मत मतान्तरके झगडेसे विरक्त हो कृष्ण नरेन्द्रवत एकांत गुण संग्रह मेंही तत्पर रहती हैं। _ और धनीपर धाडे पडतेहैं.” इस कहवत मुझबही ऐसेजोसम्यक्त्व रत्न रूप महा नि धानके धारक होतेहैं, उनके माल का हरण करने नाश करने विना कारणही मिथ्यात्वीयों प यत्न करतेहैं. उनका सर्व स्वय हरण कर मरणान्ततक पहोंचा देतेहें, परन्तू जिनोंने पहिक सुख सामग्रीको क्षीण भंगूर विनश्वर जानलीहै, वो ऐसे परम सुखदायि सम्यक्त्वका नाश करनातो दूर रहा परन्तु किचित मात्र वट्टाभी नहीं लगने देतेहैं. इन गुणोंका हुबह स्वरूप इ स “सम्यक्तवोत्सब” रासमें जयसेण विजयसणके कथनकर दर्शाया गयाहै. इसके दो विभागोंमें सेप्रथम भागमे तो पुण्य परतापके दशोने वाली धमे मिश्रित कौतक रूप कथाकी क थनीहै. और दुसरे भाग में-सम्यक्त्वी के लक्षण आचरण और उनको सम्यक्तव धर्मसे च लित करने मिथ्यात्वीयों कैसी योजना पर्यत्न करतेहैं, उससे सम्याक्त्वयों अपने प्राप्त र
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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