SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नका कैसी युक्ति से यत्न करत हैं. वगैरा विस्तार पूर्वक विचित्र रागों में कथ कर सम झाया गया है. पाठक गणों, श्रोता गणों, दत्त चित्त से निरन्तर इसका मनन पूर्वक पठन श्रवन कर, जिनको. सम्यक्त्वकी प्राप्ति न हूइ है वो प्राप्त करेंगे. जो सम्यक्तवी हैं वो प्राप्त रन का यत्न करेंगे-विशुद्ध निर्मल सम्यक्त्व पदार्थ को रखकर परम नन्दी परम सुखी व नेगे ऐसा परम उपकार कर्ता इस रासको जानकर इसकी१०००प्रत यहांके ज्ञान बृद्धि खाते में-निम्न दार्शत महाशयोंका द्रव्य जमाथा उसके सव्यसे आजमर-कान्फरन्स आफिसके सुखदेव सहाय जैन प्रि.प्र. में छपवाया. और वहां काम बिलम्बसे होता देख यहां इसका डीबाचा प्रस्तावना, शुद्धि पत्र वगेरा छपवाकर बाइडिंग करावाकर-सम्यक्तवी भाइयोंको अमूल्य लाभ देता हुवा कृतज्ञता समझताहूं: रुपे. सद्गृहस्थोंके नाम. गाम. जिल्ला. + ५०)-भाइजी श्री टेकचंदजी मथुरालालजी-नालछा (धार-मालवा) वाले. ३०)-भाइजी श्री टेकचंदजी ज्ञानचंदजी-दिगठाण (धार-मालवा) वाले. ५०)-भाइजी श्री कुवरमलजी नत्थुमलजी जैनीकी मारफत-रोपड (पंजाब) वाली पांच बाइयों २५)-भाइजी श्री नवलमलजी मूरजमलजी धोका यादगिरी(हैद्राबाद) २५)-भाइजी श्री रूपचंदजी छगनीरामजी संचेती बेजापुर (हैद्राबाद)
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy