________________
* प्रस्तावना. * गाथा-ण दशणं णाण । णाण विण नहुन्ति चरण गुण ॥
अगुणस्स नत्थि मोख्खो । नत्थिऽमोख्खस्स निव्वाणं ॥१॥ श्री उत्तराध्ययनजी सूत्रके २६वे अध्यायमें फरमाया होक-सम्यक्त्व विना ज्ञान न हीं होता है, ज्ञान विना चारित्र नहीं होताहै. चारित्र विना मोक्ष नहीं होता है. और मोक्ष प्राप्त हुवे बिना दुःखसे छुटका नहीं होता है. इन बचनोंसे सत्य समझीए कि-सर्व दुःखोसे मुक्त कर सर्व सुखों की प्राप्तिका प्रथमिक सच्चा साधन सम्यक्त्वही है. अर्थात्-जिनोंके सम्यक्त्वकी प्राप्ति हुइहै उनकी आत्मा अनुक्रम से-सम्यक्त्वसे ज्ञान, ज्ञानसे चारित्र, चारित्र से मोक्ष और मोक्षस अनन्त अक्षय निराबाध शाश्वत परमानन्द परम सुखकी प्राप्ति करती है ऐसा सम्यक्त्व रूप निधानकी प्राप्ति विश्वालय निवासी अन्तान्त प्राणीयोंमेंसे किसी एक प्राणी कोही होतीहै. अर्थात् सम्यक्त्व नाम धारी व हम सम्यक्त्वीहैं-ऐसे मानने वाले औ र कहने वालेतो असंख्यातेही निकल आवेंगे परन्तु असंख्यात नाम रूप धारी सम्यक्त्वीयों मेंसे भी-सच्ची सम्यक्त्वका स्पर्शन करने वाले-आराधने वालेतो कोइ विरलेही पावेंगे?x ___ + दोहा-समकिती २ सब कहे । मिथ्या कहे न कोए ॥ जिस घट समकित पाइये । सो घट विरलाहोय॥