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________________ १४८ अविभाल माल कंठ में । बोले विश्वासु बोल ॥२॥ काबड खन्ध है नाग की । पुंगी मधुरी बजाय ॥ भूजंग रमे तस तन परे । प्रत्यक्ष परिचय देखाय ॥३॥ दर्श देख गारुडी को । संतोषाणा सब मन ॥ यह तो निश्चय टाल से । आपणा सर्व विधन ॥४॥ ॥ ढाल १४ वी ॥ बिणजारारे ॥ यह ॥ सुणो श्रोता हो ॥ सर्वजन खुशी अति होय । सत्कार कियो गारुडी तणो॥सुणो श्रोता हो ॥ सुणो श्रोता हो॥ प्रावो | ऊरा महाभाग्य । तुम दीठा हमने अानन्द घणो॥सुणो॥१॥सुणो॥कृपा करी इणवार। A करामात देखावीये ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ उतारो छेऊ को जेहर । हमारी चिन्ता गमावीये॥सुणो॥२॥ मुणो ॥ करस्यां खुशी तुम ताय । मांग सो सो देस्यां सही ॥ सु. हो ॥ सुणो ॥ उपकार होसी अपार । जीवित लगे भूलस्यां नहीं ॥ सुणो॥३॥ । सुणो भाइ हो । गारूडी छेऊं ने देख । कहे यह बिष विषम अति ॥ सुणो भाइ । हो । सुणों भाइ हो । असाद्य सो दिखे यह । तो भी यतावू मुझ शक्ति ॥ सुणो ४॥ सुणो ॥ मैं जाणूं अनेक उपचार । निर्विष निश्चय करस्यूं सही ॥ सुणो॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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