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ज०वि० कर्मोदय प्राप्तज हुयां। नहीं चाले एक जतन ॥रा०॥१६॥ शोकातूर सर्व जनहुइ। १४७ करे छउंको विविध उपचार ॥ औषध मंत्र मणी श्रादि सहू। पण असर न करे ।।
लगार ॥ रा०॥ २० ॥ शोकातुर सर्व हो कहे । अब करनो किस्यो इलाज ॥
देव कोप्यो राय ऊपरे । करबा लागो महा अकाज ॥राजे ॥ २१ ॥ पुनः सचीव । | सामन्त मिली। कहे त्रासी ने मानो राय ॥ तुम रागी जिनवणना। तो दयान ||
घट किम प्राय ॥ रा०॥ २२ ॥ मनुष्य मरे छे धाने । डूबे श्रापको वंश ॥ यह N] पातक किण सिर चडे ! घर हाणीने जन हंस ॥ रा०॥ २३ ॥ शास्त्र में जिनजी कह्याजी। छे छन्डी आगार ॥ कारण उपने कुदेव ने । करे महा श्रावक नमस्कार |
॥रा०॥ २४ ॥ इत्यादि समजावे घणा । पण राय न माने रंच ॥ ढाल तेरे अ| मोलक कहे । राय जाण्यो देव परपंच ॥ राजे ॥ २५ ॥ ॐ ॥ दोहा ॥ ते अवसर तहां भावीयो । सकल गारुडी सिरदार ॥ साज सज्यो तिण सहू विधी । देखत चित्त दे ठार ॥ १॥ गेरुवा वस्त्र तन सज्यो। जटा में कंगा खसोल ॥ तिलक