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________________ ज०वि० सुणो । करणहार करतार । करामात सब देखो यही ॥ सुणो ॥ ५ ॥ यों बहू १४६ / बातों बनाय । कुंवारी कन्या बोलावइ ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ न्हवाइ पुष्पे सजाय। पद्मासन वेसावइ ॥ सुणो ॥ ६॥ सुणो ॥ अक्षन छाट्या तस तन । थर २ ते धूN जण लगी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ नागदेव अायो अंग । गारुडी कहे देखो जगी॥ सुणो ॥७॥ सुणो ॥ तस गारुडी कियो सत्कार । भले पधार्या कृपा करी ॥ नाग रायारे ॥ नाग रायारे ॥ होवो हम पर संतुष्ट । छेऊ को विष लेवो हरी ॥ नाग रायारे ॥ ८ ॥ सुणो भाइ हो ॥ कंन्या मुखथी सुर केय । कोपातुर होइ | घणो ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ यह राय अभीमानी अत्यन्त । अपमान अति कीयो I हम तणो ॥ गारुडी हो ॥ ८॥ गारुडी हो ॥ मिथ्यात्वी कुदेव केय । परभा जरा 10 नहीं केहनी ॥ गारु०॥ तेहथी बताइ चमत्कार । मगरुरी हरु राहनी ॥ गा.॥ ॥ गारुडी हो ॥ तूं जा थारे घेर । इण दुष्टरो पक्ष परिहरी ॥ गारु०॥ गारु०॥ नहीं मानु थारी केण । रीस बुरी छे माहेरी ॥ गा०॥ १०॥ सुणो भाइ हो ।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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