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ज०वि० १४०
२० ॥ रायजी आया निज महल में । धरता चित्त चमत्कार ( धूर्त साधु ने श्रावक सौ | खटके चित्त मझार ॥ सत्य || २१ || खेदाश्वर्य यह अति । ऊंच आत्म यो प्राय । श्रद्धा विना रूले चउगते । सत्य श्री जिनवाय || सत्य २२ ॥ यों भाचे निर्मल भावना । धन्य विजय नृपाल | प्रत्यक्ष बिपरीती जो दृढ रह्या । अमोल एक दश ढाल || सत्य || २३ || दोहा ॥ चित में चिन्ते असुर ते । निष्फल हुवा सौ उपाव । परपर कर सहू दाखव्या । तेह से स्थिर रह्या भाव ॥ १ ॥ अब बीतावुं घर परे । न्हाखी शंकट पूर ॥ जो फिर बढ़ किम रहा कुमति ये चिन्ती यों सुर ॥ २ ॥ सब मुगे सूता निशी विषे ॥ तब देव स्वप्न मकार । राय सचीव सामन्त को । है दिव रूप निजधार ॥ ३ ॥ शीघ्र सावध होवो सहू तुमे । जो इच्छो हो सुख ॥ तो वयण सत्य मानजो। तुम पुर पर आवे महा दुःख ॥ ४ ॥ नाग कुमार कोपित हुवा । करेगा विधन अपार || प्राते पूजो नाग मूरती । तो वरसी चेनचार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १२ वी ॥ श्रावक श्री वीरना चम्पाना