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छोड़ो यह खटपट | सत्य ॥ १२ ॥ तत्वज्ञ होकर निर्णय करो । छोड़ो असत्य ये मत । इत्यादि बचन का घणा । जाणे राव माने सत | सत्य ॥ १३ ॥ स्वधर्म हीला सुख करी । राय कोपित होय । जाण्यो निन्हव तेह ने । भेषी मिथ्यामति सोय ॥ सत्य' ॥ १४ वे परवा होइ वदे तदा । बोल विचारी ने बोल । निन्दे महारा देव गुरु भी । जाण्यो वचन से तोल || सत्य ॥ १५ ॥ निर्णय कर निश्रयात्म हो । ग्रह्मो जैन धर्म मेय | नहीं निश्चय इण सारखो । अन्य धर्म बिश्वे ar || सत्य ॥ १६ ॥ कौन सामर्थ त्रिलोक में । करे मिथ्या जिन वैण नहीं तुं श्रावक । नहीं मानु थारी केण ॥ सत्य ॥ १७ ॥ रे मिथ्यात्वी कदा ग्रही । दांभिक भेष बणाय । यो ठगवा भोला भणी । पण मठ गावंगा नाय ॥ सत्य ॥ १८ ॥ पाखण्डी संग बोलणो । मुझ जरा जुगतो नाय । शीघ्र जा यह स्थानक तजी । जो कुशल तूं चहाय ॥ सत्य ॥ १६ ॥ कोप वचन सुणी राय का । सुर चमक्यो चित मकार । तत्क्षीण उठ चलतो हुवो । नहीं कियो चूंकार ॥ सत्य ॥