SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म०वि० १३८ श्रद्धे परतीत चित रूचे । अाराध में निज सत्व ॥ सत्य ॥ ४ ॥ कदा एक हीरो खोटो दिखे । सब खोटा जाणो नाय ॥ खोटा सो तो खोटा ही है । खरा खोटा । नहीं थाय ॥ सत्य ॥ ५ ॥ एक वक्त लूटावे मार्गे । दूजी वक नहीं जाय। तो रस्ता । सब बन्ध हो । जगरूढी नाश पाय ॥ सत्य ॥ ६॥ परम मार्ग वीतराग को। घणा पालणहार ॥ यह टोली मिली पाखंडी की । दूजा नहीं इणसार ॥ सत्य ॥ ७॥ महामुनि घणा भरत में । शुद्ध पाले प्राचार ॥ तैसेही सतीयां घणा। उनको महारो नमस्कार ॥ सत्य ॥ ८ ॥ अवधि ज्ञान देखे देवता । नृपति स्थिर परिणाम ॥ पाखण्ड पेखी दृढ घणा हुवा । देव विस्मय रयो पामे ॥ सत्य ॥ ६ ॥ प्रकट कहे सुणो रायजी। राणी अवगुण न जोय । थे तो फस्या हो दृष्टि राग में । शुद्ध मति कैसी होय ॥ सत्य ॥ १० ॥ जैसे कामी कामान्ध हो । न देखे नारी अवगुण । तिम जिन मत राचिया । विष्णसी मति जो निपुण ॥ सत्य ॥ ११ ॥ कुपक्षी धर्म न गृही सके । सुपक्षी सो ग्रह झट । अन्तर नेण खोली जोवो।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy